उत्तरकाशी। रवांई घाटी के गैर बनाल में देवलांग का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया गया। देवलांग का यह पर्व रवांई घाटी की बनाल पट्टी के गैर गांव में राजा रघुनाथ मंदिर में मनाया जाता है। देवलांग उत्सव में शामिल होने के लिए ग्रामीणों का भारी हुजूम उमड़ा। रात भर ग्रामीण देवलांग के पारंपरिक गीतों पर नाचते रहे। बुधवार सुबह पौ फटने के साथ देवलांग को खड़ा प्रज्वलित किया गया। जिसके बाद देवलांग उत्सव में हजारों श्रद्धालु झूम उठे।
देवलांग उत्तराखंड के उत्तरकाशी जनपद में रवांई के खास त्योहार में शामिल है। जो आज भी अपनी पौराणिकता को समेटे हुए है। इस पर्व को मनाने की परंपराएं ही इसे खास बनाती है। यूं तो इस उत्सव की तैयारियां एक माह पहले से हो जाती हैं। परंतु इस उत्सव की तिथि मंगसीर अमावस्या है।
यानि मंगलवार की सुबह (12 दिसंबर की रात 13 दिसंबर की सुबह) को देवलांग उत्सव शुरू हुआ। इस उत्सव की तैयारियों के सभी कार्य प्राचीन काल से चली आ रही सभ्यता के अनुरूप बंटे हुए हैं। मंगलवार की सुबह गैर गांव के नटाण परिवार के सदस्यों ने देवलांग “देवता का लंबा देवदार का वृक्ष” ब्याली के जंगल से लेकर गैर गांव के राजा रघुनाथ मंदिर परिसर तक पहुंचाया। मंदिर परिसर में नटाण परिवार लोगों को भव्य स्वागत हुआ। फिर ब्याली के ग्रामीण वहां पहुंचे।
देवलांग पर सूखी लकड़ी के छिलके बांधे और अमावस्या की रात तक देवलांग की देखरेख की। जब देवलांग को खड़ा को खड़ा करने में साठी और पानशाही थोक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिए बुधवार की सुबह दोनो थोक के ग्रामीणों ने देवलांग पर बंधे छिलकों को प्रज्वलित किया तथा देवलांग वृक्ष को खड़ा किया। देवलांग पर बंधे छिलके सुबह होने तक जलते रहे। फिर देवलांग की अंतिम मशाल मड़केश्वर मंदिर में पहुंचाई गई। मड़केश्वर मंदिर के बाहर ही मुख्य पुजारी शिव प्रसाद गौड़ ने हवन और पूजा संपन्न कराई। जिसके बाद देवलांग उत्सव संपन्न हुआ।
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